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प्रेम और सौंदर्य के अद्भुत शब्द शिल्पी,किशन सरोज-लेखक कवि ऋषि कुमार शर्मा च्यवन

बरेली- दिनांक 8 जनवरी उनकी पुण्यतिथि पर विशेष प्रेम और सौंदर्य एवं प्रकृति के अद्भुत शब्द शिल्पी साहित्य भूषण गीत ऋषि स्मृति शेष किशन सरोज की पुण्यतिथि पर उन्हें भावांजलि के रूप में उनके विषय में कुछ लिखना सूरज को दीपक दिखाने के समान है,बरेली ही नहीं देश और प्रदेश के गौरव किशन सरोज का जन्म 19 जनवरी वर्ष 1939 को बरेली जनपद के ग्राम बल्लिया में हुआ था, इन्होंने ग्रेजुएशन के पश्चात अपनी एम.ए. की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी,कविताओं को सुनने का शौक इन्हें प्रारंभ से ही था।

एक दिन यह गुलाब राय इंटर कॉलेज में आयोजित कवि सम्मेलन में पहुंचे जहां प्रेम बहादुर प्रेमी और सतीश संतोषी जी के गीतों ने इनके ऊपर बहुत प्रभाव डाला और इनका रुझान कविताओं की ओर हो गया,इन्होंने कवि प्रेम बहादुर प्रेमी को अपना काव्य गुरु मान लिया और लगभग बीस वर्ष की आयु में काव्य की साधना में लीन हो गए,इसी दौरान में आपकी भेंट गोपाल दास नीरज, रमानाथ अवस्थी,भारत भूषण आदि से हुई, जिन्होंने इन्हें कवि सम्मेलनों हेतु आमंत्रित किया और यह कवि सम्मेलनों में भागीदारी करने लगे।

वर्ष 1963 में इनके जीवन का वह दिन अविस्मरणीय रहा जब गोपाल प्रसाद व्यास जी के माध्यम से मिले निमंत्रण पर यह लाल किले से अपनी कालजई रचना चंदनवन डूब गया को सुना कर पूरे भारतवर्ष में लोकप्रिय हो गये,मत बांधो आंचल में फूल चलो लौट चलें, वह देखो कोहरे में चंदनवन डूब गया किशन सरोज जी के इस गीत को इतनी अधिक लोकप्रियता मिली की आकाशवाणी से इसका लगातार दो वर्षों तक प्रत्येक गुरुवार को प्रसारण किया गया।धीरे-धीरे इन्होंने हिंदी गीतों के माध्यम से काव्य प्रेमियों के हृदय और मन मस्तिष्क में अपनी गहरी छवि बना ली।

इसी के साथ-साथ उनकी रेलवे की नौकरी भी चलती रही, लगभग 1980 के आसपास आपका प्रथम गीत संग्रह ‘चंदन वन डूब गया’ प्रकाशित हुआ और वर्ष 2006 में आपकी दूसरी पुस्तक ‘बना न चित्र हवाओं का’ गीत संग्रह के रूप में भी प्रकाशित हुई,इन पुस्तकों के प्रेम और सौंदर्य के गीतों को खूब सराहा गया,इसी के साथ में किशन सरोज ने विभिन्न मंचों पर खूब अधिकार पूर्वक अपने गीतों से लोगों का प्रभावित किया,इनके कुछ गीतों में चंदनवन डूब गया ताल सा हिलता रहा मन तुम निश्चिंत रहना गुलाब हमारे पास नहीं आदि गीतों ने खूब प्रभावित किया।

यह प्रेम और सौंदर्य के गीतकार के रूप में जाने जाने लगे,अपनी काव्य यात्रा के दौरान इन्होंने लगभग 400 से अधिक गीतों का सृजन किया था,अपने गीतों से यह ऐसा चित्र खींचते थे जो सीधे हृदय और मस्तिष्क पर प्रभाव डालता था,अपनी रेल विभाग की सेवा से सेवानिवृत होकर इन्होंने बरेली में हार्टमैन विद्यालय के पास आज़ादपुुरम कॉलोनी में अपना निवास बनाया।

विशेष काव्य समारोहों में उनकी भागीदारी रहती थी,मेरे इनसे लगभग 20-25 वर्षों से निकट के संबंध रहे,मेरे निवास स्थान पर अनेक बार विशेष काव्य गोष्ठियों में इनकी भागीदारी रहती थी,इनका आशीर्वाद और स्नेेह सदैव मुझे प्राप्त होता था और उनके निवास स्थान पर भी मेरा कई बार आना जाना लगा रहता था,कुछ समय से अस्वस्थता के चलते दिनांक 08 जनवरी 2020 को इन्होंने अंतिम सांस ली। और वास्तव में एक किशन सरोज रूपी चंदन वन डूब गया,उनकी स्मृतियों को नमन के साथ हार्दिक भावांजलि।

 

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