crossorigin="anonymous"> अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस पर लेख-धर्मेंद्र कुमार - V24 India News
InternationalBareillyOtherUttar Pradesh

अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस पर लेख-धर्मेंद्र कुमार

बरेली– ऋषि-मुनियों द्वारा दिया वरदान है योग, योग शब्द आते हमारे मन में आसन आने लगते हैं, ऐसा लगता है कि सिर्फ आसन ही योग है। जबकि ऐसा नहीं है, महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग सूत्र दिए हैं जिसमें आसन तीसरे नंबर पर आता है। पहले नंबर पर आता है यम जो समाज के लिए है जिसमें अहिंसा,सत्य,अस्ते(चोरी न करना),ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह के बारे में बताया गया है। यम को महाव्रत कहा गया है,किसी भी जाति के लिए किसी भी देश में किसी भी काल में यह पालन करने योग्य हैं।

दूसरे नंबर पर नियम के बारे में बताया गया है कि जो व्यक्तिगत जीवन के लिए हैं उन्होंने पांच प्रकार के नियम बताएं हैं जैसे शौच शरीर और मन की शुद्धि, संतोष सम्पूर्ण प्रयत्न के बाद भी जो मिले उसमें संतोष रखना,तप अपनी क्षमता के अनुसार शारीरिक व मानसिक कष्ट सहन करना, स्वाध्याय स्वयं का अध्ययन,गुरु वचनों का अध्ययन तथा ईश्वर प्रणिधान सब कुछ ईश्वर को समर्पित कर देना,तीसरे नंबर पर उन्होंने आसन बताएं है कि आसन सिद्ध होने के बाद चौथे नंबर पर उन्होंने प्राणायाम के विषय में बताया है।

 

उन्होंने बताया है आसन सिद्ध हो जाने के बाद श्वास प्रश्वास की गति में जो हम विच्छेद लाते हैं उसे ही हम प्राणायाम कहते हैं कि प्राणायाम से हमारी आत्मा के प्रकाश पर पड़े अविद्या के आवरण दूर होते हैं एवं धारणा के लिए मन को तैयार करता है,पांचवे नंबर पर उन्होंने प्रत्याहार के बारे में बताया,प्रत्याहार यानी इंद्रियों को अंदर की ओर कर लेना या इंद्रियों का विषयों से संपर्क ना होने पर दृष्टा का चित्त जैसा हो जाना,प्रत्याहार से इंद्रियों पर हमारी विजय हो जाती है,छठे नंबर पर धारणा के विषय में बताया है किसी एक देश में किसी एक विषय पर अपने चित्त को बांध लेना ही धारणा है।

 

सातवें नंबर पर उन्होंने ध्यान के बारे में बताया है कि धारणा के विषय में जब आप स्थित हो जाते हैं, तो वह ध्यान है अंत में आठवें नंबर पर उन्होंने समाधि के विषय में बताया जब आप अपना स्वरूप भूल जाओ,क्या कर रहे हो यह भूल जाओ सिर्फ ध्येय ही रह जाए वही समाधि है,योग संस्कृत शब्द है,जो युज् धातु से बना है जिसका सामान्य अर्थ है जोड़ना जैसे जीवात्मा और परमात्मा का मिलन,महर्षि पतंजलि के अनुसार योग के मुख्य उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति, कैवल्य की प्राप्ति,मृत्यु के आगे तथा समाधी तक जाने के लिए है, योग चिकित्सा पद्धति नहीं है।

 

लेकिन चिकित्सा के फायदे इससे मिलते हैं यह समाधि के लिए है अलग-अलग शास्त्रों में योग की अलग-अलग परिभाषाएं हैं,पतंजलि योग सूत्र के अनुसार योग चित्त वृत्ति निरोध: चित्त की वृत्तियों को चंचल होने से रोकना ही योग है,भगवत गीता के अनुसार समत्वं योग उच्यते प्रत्येक परिस्थिति में समान रहना ही योग है भगवत गीता के अध्याय 2 के 48 वें श्लोक में ऐसा कहा गया है।

 

योग: कर्मसु कौशलम् कर्म में कुशलता ही योग है जो भी आप काम करते हैं, उसमें अपना सर्वश्रेष्ठ दें,भगवत गीता के अध्याय 2 के 50 में श्लोक में ऐसा कहा गया है महर्षि व्यास के अनुसार योगः समाधि अर्थात समाधि ही योग है और योग वशिष्ठ के अनुसार मनः प्रशमनोपायो योग इत्यभिधीयते योग मन को प्रसन्न करने का उपाय है,योग सिर्फ आसन नहीं है जिससे सिर्फ शारीरिक तल पर स्वस्थ रहा जा सकता है बल्कि यह एक गहन अभ्यास है जिससे हम ना सिर्फ शारीरिक रुप से स्वस्थ रहते हैं

 

बल्कि मानसिक,भावनात्मक व सामाजिक रुप से स्वस्थ रहते है और आध्यात्मिक रूप से उन्नति करते है,योग किसी एक धर्म या देश तक सीमित नहीं है,यह एक पद्धति हैं,जीवन जीने की एक शैली है, जिसे भारतवर्ष में हमारे पूर्वजों ने हमारे ऋषि मुनियों ने खोजा और इसे अपनाकर ही हम अपने परमलक्ष्य को पा सकते है और इस बात को आज पूरा विश्व मान भी रहा है और मना भी रहा है विश्व योग दिवस,तो आइए हम और आप सपरिवार इसमें शामिल हों और योग दिवस के महत्व को बारीकी से समझने की कोशिश करें।

 

 

About Author

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button