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अप्रतिम देशभक्त कर्नल पतंजलि शर्मा-ऋषि कुमार च्यवन(लेखक)

बरेली– स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव,मेरी माटी मेरा देश एवं मेरा युवा भारत 31 अक्टूबर पर विशेष स्मृति शेष लेफ्टिनेंट कर्नल पतंजलि शर्मा जिनकी जन्मभूमि बदायूं एवं कर्मभूमि बरेली रही और इन्होंने अपनी अंतिम सांस एक राष्ट्रभक्त सैनिक के रूप में लेने की अभिलाषा को पूर्ण करते हुए बरेली में 29 जून वर्ष 2009 को अपनी अंतिम सांस ली,स्मृति शेष कर्नल पतंजलि शर्मा का जन्म 31 मई वर्ष 1925 में बदायूं जिले के ग्राम गुराई में जमींदार परिवार में हुआ था,इनके ताऊ पं.तुलसीराम शर्मा सरकारी चिकित्सक थे और पिता श्याम बिहारी लाल नायब तहसीलदार के रूप में पदस्थ थे।

वही बचपन से ही स्मृति शेष पतंजलि शर्मा के अंदर राष्ट्रभक्ति एवं मातृभूमि के प्रति प्रेम कूट-कूट कर भरा था,जब यह हाई स्कूल में पहुंचे तो इन्होंने गवर्नमेंट हाई स्कूल बदायूं में प्रवेश ले लिया,इनकी प्रगाढ़ मित्रता सुधाकर शर्मा एवं एक और मित्र वर्मा के साथ थी और यह तीनों ही अपने देश की परतंत्रता से व्यथित रहते थे,वर्ष 1942 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो के आंदोलन का बिगुल बजाया।

अक्टूबर माह के वर्ष 1942 में इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के उद्देश्य से इन तीनों मित्रों ने आपस में योजना बनाकर की किस तरीके से ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध अपना रोष प्रकट किया जाए उसके लिए उनकी बाल बुद्धि में यह विचार आया कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे ब्रिटिश हुकूमत और सरकार को आतंकित किया जा सके,इस उद्देश्य को लेकर गवर्नमेंट हाई स्कूल जिस में यह लोग अध्ययन कर रहे थे उसको अग्नि के हवाले करके बदायूं शहर और प्रदेश में ब्रिटिश हुकूमत की जड़ों को हिलाने की योजना बनाई।

उस समय इन तीनों मित्रों की आयु 15 या 16 वर्ष की थी,एक दिन रात्रि में छुपते-छुपाते यह तीनों मित्र हाथ में मिट्टी के तेल की पिपिया,माचिस और रस्सी लेकर गवर्नमेंट हाई स्कूल पहुंच गए,जहां पर सुधाकर एवं वर्मा ने मिलकर पतंजलि को रोशनदान के सहारे नीचे अध्ययन कक्ष में उतार दिया और पतंजलि ने अध्ययन कक्ष में बैचों पर मिट्टी का तेल छिड़क कर उसे अग्नि के हवाले कर दिया और दोनों मित्रों ने इन्हें रस्सी के सहारे ऊपर खींच लिया,यह तीनों मित्र वहां से फरार हो गए,कुछ ही समय में पूरा विद्यालय अग्नि के चपेट में आकर धूं धूं कर जलने लगा।

इस अग्निकांड की सूचना मिलने पर पुलिस व प्रशासन और अंग्रेज अधिकारियों के बीच एक भय और दहशत का माहौल बन गया,कुछ ही देर में यह बात पूरे बदायूं शहर में फैल गई,इस अग्निकांड के बाद बदायूं शहर की पुलिस व खुफिया विभाग इस अग्निकांड के तह में जाने और इसमें लिप्त लोगों की पहचान के लिए रात दिन एक करने लगे तभी मुखबिरों के द्वारा उन्होंने शक में वर्मा और सुधाकर शर्मा को हिरासत में लिया किंतु कुछ साक्ष्य ना मिलने पर इनसे कुछ ज्ञात न हो पाने के कारण उन्होंने इन्हें छोड़ दिया।

किंतु पुलिस और खुफिया विभाग सुराग लगाने में लगे रहे और कुछ दिनों बाद उन्होंने पतंजलि को गिरफ्तार कर लिया,इस प्रकरण में बहुत पूछताछ और प्रताड़ित करने के पश्चात भी उन्हें जब कुछ ज्ञान नहीं हो सका तो उन्होंने इन्हें न्यायिक अभिरक्षा में कारागार भेज दिया,कारागार से जब यह अंग्रेज मजिस्ट्रेट के समझ ले जाये जाते तो मजिस्ट्रेट उनसे अपने अपराध के लिए क्षमा मांगने पर छोड़ देने का लालच देते,किंतु इन्होंने क्षमा मांगने से स्पष्ट इनकार कर दिया।

लगभग तीन सप्ताह कारागार में रहने के पश्चात एक दिन न्यायिक मजिस्ट्रेट को अपने कर्मचारियों के द्वारा पतंजलि के पिता और चाचा के विषय में ज्ञात होने पर उन्होंने इनके चाचा हरिशंकर मुख्तार से कहा कि आप अपने भतीजे को समझाएं और वह माफी मांग ले तो मैं उसे बरी कर दूंगा,किंतु उनके चाचा ने भी स्पष्ट इनकार करते हुए कहा कि पतंजलि हरगिज माफी नहीं मांगेगा,तब मजिस्ट्रेट ने इन्हें बरी तो कर दिया किंतु इनको ब्रिटिश सरकार के लिए बहुत खतरनाक मानते हुए इन्हें हिस्ट्रीशीटर घोषित किया और उनकी हिस्ट्री शीट खोल दी गई।

जो हाई स्कूल करने के पश्चात उनके उच्च शिक्षा हेतु आगरा जाने और इनके एम.बी.बी.एस. करने के दौरान भी चलती रही,इन्हें स्थानीय पुलिस में जाकर अपनी हाजिरी लगाते रहना पड़ती रही,बाल्यकाल से ही इनकी इच्छा सेना में जाकर देश सेवा करने की थी,यह अत्यंत ही मेधावी थे और प्रत्येक कक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करते थे,किंतु इनके ताऊ के सरकारी चिकित्सक होने के कारण इनके ताऊ इन्हें चिकित्सक बनाना चाहते थे और इनके पिता प्रशासनिक अधिकारी होने के कारण इन्हें उच्च प्रशासनिक अथवा पुलिस अधिकारी बनाना चाहते थे।

संयुक्त परिवार में सबसे बड़े होने के कारण उनके ताऊ की इच्छा के अनुसार इन्होंने चिकित्सा की शिक्षा हेतु परीक्षा में भाग लिया और इनका चुनाव एम.बी.बी.एस के लिए हो गया,एम.बी.बी.एस करने के दौरान भी उनकी इच्छा सेना में ही जाकर सैनिक बनने की बलवती रही और वर्ष 1949 में एम.बी.बी.एस करने के पश्चात इन्होंने सेना में चिकित्सक हेतु आवेदन किया और इनका चुनाव लेफ्टिनेंट के रूप में कर लिया गया किंतु अपने माता-पिता का एक मात्र पुत्र होने के कारण उन्होंने इन्हें सेना में नहीं जाने दिया,इन्होंने मन मारकर प्रांतीय चिकित्सा सेवा चुन ली।

किंतु एक सैनिक के रूप में अंतिम सांस लेने की इनकी अभिलाषा दिल में लगातार बलवती रही,इन्हें इसका अवसर मिला वर्ष 1962 के चीन भारत युद्ध में और इन्होंने अपनी 14 वर्षों की प्रांतीय सेवा छोड़कर जनवरी 1963 में पुनः एक लेफ्टिनेंट के रूप में सैन्य चिकित्सा सेवा ज्वाइन कर ली,सैन्य सेवा के दौरान इन्होंने वर्ष 1965 में कश्मीर बॉर्डर और 1971 में पंजाब बॉर्डर पर युद्ध में भी भाग लिया, हालांकि इन्हें 14 वर्षों की वरिष्ठता नहीं मिली और 17 वर्ष सैन्य सेवा करने के पश्चात जून माह के वर्ष 1980 में बरेली के सेना अस्पताल से लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में सेवानिवृत हो गए।

इनके कुछ साथी वर्ष 1949 में सैन्य सेवा में जाकर वरिष्ठतम पदों तक पहुंचे तथा प्रांतीय चिकित्सा सेवा के भी इनके साथ के कुछ अधिकारी उच्चतम पदों पर पहुंचे किंतु इन्हें इन पदों की लालसा न होकर अंतिम सांस एक सैनिक के रूप में ही लेने की अभिलाषा पूर्ण कर पाने के कारण पूर्ण आत्म संतुष्टि के साथ इन्होंने अपनी अंतिम सांस ली, यह उल्लेखनीय है कि इनके पिता ने इनके बाल्यकाल काल में ही भ्रष्टाचार से दूर रहने और ईमानदारी के कारण 16 साल का सेवा करके त्यागपत्र दे दिया था।

इन्होंने अपना बाल्यकाल अपने चाचा के घर पर उन्हीं के पालन पोषण में रहकर अपनी शिक्षा दीक्षा पूर्ण की,इनके समस्त व्यय इनके चाचा ने ही वहन किया,अपने पिता के ही तरह इनके अंदर भी ईमानदारी कूट-कूट कर भरी थी और एक राष्ट्रभक्त एवं कर्मठ,मृदुभाषी एवं सबसे स्नेह करने वाले व्यक्ति के रूप में इन्होंने अपना पूरा जीवन व्यतीत किया,बहादुरी की यह अपने आप में एक मिसाल थे।

इन्होंने कभी भी अपने जीवन में अपने अथवा किसी अन्य के प्रति अन्याय को सहन नहीं किया और उसके प्रतिरोध में अकेले ही खड़े हो जाते थे,स्वतंत्रता के अमृत वर्ष में एक स्वतंत्रता सेनानी तथा एक राष्ट्रभक्त के रूप में और हमारे माननीय प्रधानमंत्री के द्वारा 31 अक्टूबर को ‘मेरा युवा भारत के रूप में भारतवर्ष के युवाओं को राष्ट्र भक्ति एवं राष्ट्र के प्रति प्रेम दर्शाने के लिए आज के दिन स्मृति शेष कर्नल पतंजलि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर यह लेख समर्पित है।

उल्लेखनीय है कि माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी एवं माननीय मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से प्रत्येक जिले के भूले बिसरे स्वतंत्रता सेनानियों पर लिखी पुस्तक में स्मृति शेष कर्नल पतंजलि शर्मा का भी बदायूं के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने का और कारागार में निरुद्ध रहने का विवरण प्रसिद्ध राष्ट्रीय गीतकार डाॅ.उमिॅॅलेश शंखधर के सुपुत्र डॉ.अक्षत अशेष के द्वारा लिखित पुस्तक में अंकित किया गया है।

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