गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान दिवस पर विशेष-लेखक ऋषि कुमार च्यवन
बरेली-एक अप्रैल सन् 1621 में अमृतसर में गुरु हरगोविंद एवं नानकी जी के घर में एक पुत्र रत्न ने जन्म लिया जो बाद में गुरु तेग बहादुर के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुए,सन् 1634 में इनका विवाह माता गुजरी जी के साथ हुआ और इन्होंने सन् 1666 में गुरु गोविंद सिंह के रूप में एक पुत्र रत्न को जन्म दिया,आतताई शासन की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी।
यह गुरु जी के निर्भय आचरण,धार्मिक अडिकता,नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण थी,गुरु जी मानवीय धर्म वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरुष के रूप में सदैव याद किए जाते रहेंगे,सिख धर्म के धर्म गुरुओं में तेग बहादुर जी नवें गुरु के रूप में जाने जाते हैं,इन्होंने धर्म के सत्य ज्ञान के प्रचार प्रसार एवं लोक कल्याणकारी कार्यों के लिए कई स्थानों पर भ्रमण किया।
आनंदपुर से किरतपुर, रोपड़,सैफाबाद के लोगों को संयम से सहज मार्ग का पाठ पढ़ाते हुए दमदमा साहब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुंचे,वहाँ से युमना किनारे होते हुए कड़ामानकपुुर पहुंचे यहां साधु भाई मलूक दास का उद्धार,किया यहां से गुरुजी प्रयाग,बनारस,पटना,आसाम आदि क्षेत्रों में गए जहां उन्होंने लोगों के आध्यात्मिक,सामाजिक,आर्थिक उन्नयन के लिए कई रचनात्मक कार्य किए,आध्यात्मिक स्तर पर धर्म का सच्चा ज्ञान बांटा,सामाजिक स्तर पर चली आ रही है।
रूढ़ियों अंधविश्वासों की कड़ी आलोचना कर नए सहज जनकल्याणकारी आदर्श स्थापित किये,उन्होने प्राणी सेवा एवं परोपकार के लिए कुएं खुदवाए,धर्मशालाएं बनवाईं तथा अनेकों परोपकारी कार्य भी किए,इन्हीं यात्राओं के बीच में ही पटना में गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म हुआ था,सन् 1675 में इन्हें रोपर से गिरफ्तार करके सरहिंंद जेल भेज दिया गया जहां से इन्हें दिल्ली ले जाया गया और उस समय के आतताई शासक औरंगजेब के सम्मुख पेश होने पर औरंगजेब ने इन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए प्रताड़ित किया।
किंतु इन्होंने अपना शीश कटा देने किंतु केश न कटाकर इस्लाम धर्म स्वीकार करने को बहुत दृढ़ता पूर्वक इनकार कर दिया,जिससे औरंगजेब बहुत कुपित हुआ और 23 नवंबर सन् 1675 को चांदनी चौक दिल्ली में काजी ने फतवा पढ़ते हुए जल्लाद जलालददीन को तलवार से गुरु साहिब का शीश धड़ से अलग करने का आदेश दिया,किंतु गुरु तेग बहादुर ने अपने मुंह से उफ तक नहीं की,आपके अद्वितीय बलिदान के बारे में गुरु गोविंद सिंह जी ने विचित्र नाटक में लिखा था।
गुरु जी का बलिदान न केवल धर्म पालन के लिए अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए बलिदान था,धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था,इसलिए धर्म के सत्य शाश्वत मूल्य के लिए उनका बलि चढ़ जाना वस्तुतः सांस्कृतिक विरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक अभियान था,आज उनके शहीदी दिवस 23 नवंबर पर उन्हें कोटि-कोटि नमन- लेखक ऋषि कुमार च्यवन।