विश्व दूरदर्शन दिवस पर विशेष कल का बुद्धू बक्सा आज की संजीवनी
बरेली– एक समय था जब दूरदर्शन को बुद्धू बक्सा कहकर हास्य परिहास किया जाता था,वास्तव में दूरदर्शन का प्रसारण कहीं स्पष्ट दिखता था कहीं धुंधला दिखता था कहीं आता था कहीं नहीं आता था, विश्व पटल पर दूरदर्शन तो बहुत समय पूर्व आ गया था किंतु भारत में इसका आगमन 15 सितंबर 1959 को हुआ। भले ही दूरदर्शन की शुरुआत हफ्ते में तीन दिन आधे आधे घंटे के कार्यक्रमों से हुई लेकिन इसका विस्तार काफी तेजी से हुआ और कुछ ही वर्षों में इस पर प्रतिदिन प्रसारण किया जाने लगा।
प्रसारण के साथ ही इसकी लोकप्रियता दिन प्रतिदिन बढ़नी प्रारंभ हुई और इसे लोग एक चमत्कार के रूप में मानने लगे,वैसे तो टेलीविजन अर्थात दूरदर्शन का आविष्कार जॉन लोगी बेयर्ड द्वारा 1925 में ही किया गया था और वर्ष 1927 में फिलो फार्न्सवर्थों द्वारा वर्किंग टेलीविजन का निर्माण किया गया उसके पश्चात जॉन लोगी बेयर्ड द्वारा इस पर गंभीरता से प्रयास करने के उपरांत वर्ष 1928 में रंगीन टेलीविजन का आविष्कार किया गया और उसके बाद तो जैसे इसने लोगों की दुनिया ही बदल दी।
टेलीविजन के महत्व और इसकी उपयोगिता और इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए 17 दिसंबर 1996 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 नवंबर को विश्व टेलीविजन दिवस मनाने का आह्वान किया और इसे विश्व टेलीविजन दिवस घोषित किया गया हालांकि पहले वर्ल्ड टेलीविजन फोरम में जो 21 और 22 नवंबर 1996 में आयोजित किया गया था जर्मनी के प्रतिनिधिमंडल ने इसका भारी विरोध किया किंतु उनकी एक न चली और 21 नवंबर को ही विश्व टेलीविजन दिवस घोषित कर दिया गया।
टेलीविजन को रेडियो का ही एक परिष्कृत रूप कहा जा सकता है भारत में भी पहले टीवी अर्थात दूरदर्शन को आकाशणी के साथ ही जोड़ा गया था बाद में आकाशवाणी से इसे अलग कर दिया गया और प्रसार भारती के अंतर्गत ही दूरदर्शन और आकाशवाणी अलग-अलग विभाग हो गए,यहां हम मुख्य रूप से भारत में टेलीविजन के विषय में कुछ प्रकाश डालते हुए यह बता रहे हैं कि प्रारंभ में भारतवर्ष में इसका नाम टेलिविजन इंडिया था,परंतु वर्ष 1975 में इस चैनल का नाम दूरदर्शन रख दिया गया।
देश के अन्य शहरों तक इस पर समाचार,चित्रहार और कृषि दर्शन जैसे विभिन्न कार्यक्रमों का भी प्रसारण किया जाने लगा,इसके बाद 1980 के दशक में पूरे भारत में रंगीन प्रसारण हुआ,लोग टीवी के दीवाने हो गये प्रारंभ में दूरदर्शन में इने गिने प्रोग्राम ही जैसे समाचार,चित्रहार इत्यादि आते थे किंतु 80 के दशक के बाद में तो इसने जैसे पंख ही लगा लिए और दूरदर्शन पर आने वाले लोकप्रिय धारावाहिकों जैसे बुनियाद,हम लोग,शक्तिमान,अलिफ लैला,रामायण और महाभारत आदि ने लोगों के दिलों पर राज करना शुरू कर दिया था।
जब दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत सीरियल देखने के लिए पूरी सड़क सूनी हो जाती थी और सब लोग जिनके पास दूरदर्शन उपलब्ध था इससे चिपक जाते थे,यदि जिसके पास दूरदर्शन नहीं होता था, वह अपने पड़ोस पड़ोस में अथवा कहीं भी जाकर इसका आनंद लेता था,इससे दूरदर्शन से धारावाहिक को भी लोकप्रियता मिली और इस धारावाहिक से दूरदर्शन को भी लोकप्रियता मिली।
वर्तमान में दूरदर्शन का जाल पूरे भारतवर्ष में फैल चुका है और इसमें अब मनोरंजक धारावाहिक,समाचार,फिल्म,गीत संगीत एवं शिक्षा तथा जागरूकता एवं विज्ञान व कृषि और इतिहास के साथ-साथ राजनीति से जुड़ी समस्त गतिविधियां हम लोगों के समक्ष आ रही हैं,आज के समय में टेलीविजन अर्थात दूरदर्शन आज प्रत्येक घर में दिखाई दे जाता है यह मनुष्य की आवश्यकताओं में शुमार हो चुका है।
आज हम पल भर में ही पूरे विश्व के प्रत्येक कोने में क्या गतिविधि हो रही है जान सकते हैं और हमारे ज्ञान को इसने बहुत परिष्कृत किया है, यह हम लोगों के लिए बहुत बड़ी आवश्यकता बन गयी है,दूरदर्शन में सेटेलाइट के द्वारा विभिन्न चैनलों के प्रसारण ने तो जैसे एक चमत्कार ही कर दिया है, अब हम उंगली के एक इशारे से अपनी पसंद का जो चाहे चैनल लगा सकते हैं और उसका आनंद तो ले ही सकते हैं, साथ में अपना ज्ञानवर्धन भी कर सकते हैं।
इसके महत्व को देखते हुए यह वास्तव में हमारे लिए एक संजीवनी बूटी का ही काम करता है, वर्तमान समय में तो 24 घंटे दूरदर्शन पर विभिन्न कार्यक्रमों का प्रसारण किया जा रहा है,एक समय में बुद्धू बक्से के रूप में संबोधित किए जाने वाला दूरदर्शन आज बहुत ज्ञानवर्धक बक्से का रूप ले चुका है,21 नवंबर के दिन टेलीविजन के आविष्कारक जॉन एल बेयर्ड को भावभीनी श्रद्धांजलि के साथ इससे जुड़े समस्त व्यक्तियों को आज विश्व दूरदर्शन दिवस पर कोटि-कोटि बधाइयां-लेखक ऋषि कुमार च्यवन।